श्यामाचरण दुबे sentence in Hindi
pronunciation: [ sheyaamaachern dub ]
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- प्रसिद्ध समाज शास्त्री प्रो श्यामाचरण दुबे द्वारा गो व
- भाग्य की बात / श्यामाचरण दुबे
- इमरजेंसी की भनक लगते ही श्यामाचरण दुबे ने आनन्द कुमार को बाहर भिजवा दिया था.
- श्यामाचरण दुबे को १९५५में हैदराबाद तथा सिकन्दराबाद के निकट के गाँव शमीरपेट में रूढ़िवाद केअनेक तत्व प्राप्त हुए.
- श्यामाचरण दुबे का कहना है कि पेड़ों से दोस्ती मनुष्य के भीतरी सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं।
- श्यामाचरण दुबे की प्रसिद्ध पुस्तक “ समय और संस्कृति के ” लोक कलाओं का भविष्य ' अध्याय से चुनिंदा अंश)
- प्रसिद्ध समाज वैज्ञानिक श्यामाचरण दुबे ने कहा था कि शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य परंपरा की धरोहर को एक पीढ़ी से दूसरी तक पहुंचाना है।
- प्रसिद्ध समाज वैज्ञानिक श्यामाचरण दुबे ने कहा था कि शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य परंपरा की धरोहर को एक पीढ़ी से दूसरी तक पहुंचाना है।
- ' हश्मत का अश्क पर, अमृत राय का सत्यजीत रे पर, पूरणचंद जोशी का श्यामाचरण दुबे पर और विष्णु खरे का अमृत राय पर।
- अब तक सीके नागराज राव, विष्णु प्रभाकर, विद्यानिवास मिश्र, श्यामाचरण दुबे, शिवाजी सावंत, निर्मल वर्मा, गोविंद चंद्र पाण्डे, एम.
- डॉ. श्यामाचरण दुबे ने अपने लेख 'संक्रमण की पीड़ा' में तेजी से बदलते सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश को गिरिजाकुमार माथुर की पंक्तियों के माध्यम से व्यक्त करने का प्रयास किया है।
- ' ' प्रसिद्ध समाजशास्त्री श्यामाचरण दुबे के इस कथन में '' इतिहास और साहित्य-इतिहास लेखन का अंतरावलंबन '' के इस सत्र की सहमति पाकर यहां इतिहास की दिशा से प्रवेश का प्रयास है।
- समाजशास्त्री श्यामाचरण दुबे के अनुसार इनका जीवन कितना कठिन रहा होगा-इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि महुआ को ये लोग कल्पवृक्ष के समान महत्व देते थे।
- प्रसिध्द समाजशास्त्री श्यामाचरण दुबे का कथन है-समाज की जड़ें अतीत में होती है, वह वर्तमान में जीता है और भविष्य उसके लिए चिंता और प्रावधान का विषय होता है ।
- डॉ. श्यामाचरण दुबे ने अपने लेख ' संक्रमण की पीड़ा ' में तेजी से बदलते सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश को गिरिजाकुमार माथुर की पंक्तियों के माध्यम से व्यक्त करने का प्रयास किया है।
- साहित्य का सामाजिक प्रभाव-श्यामाचरण दुबे यह आलेख प्रसिद्ध समाज शास्त्री प्रो श्यामाचरण दुबे द्वारा गो व पंत समाज संस्थान द्वारा आयोजित ' साहित्य एवं सामाजिक परिवर्तन' विषय पर आयोजित संगोष्ठी में दिए गए व्याख्यान पर आधारित है।
- साहित्य का सामाजिक प्रभाव-श्यामाचरण दुबे यह आलेख प्रसिद्ध समाज शास्त्री प्रो श्यामाचरण दुबे द्वारा गो व पंत समाज संस्थान द्वारा आयोजित ' साहित्य एवं सामाजिक परिवर्तन' विषय पर आयोजित संगोष्ठी में दिए गए व्याख्यान पर आधारित है।
- हमने उनकी सीमाओं पर विचार किया है, उपलब्धियों और संभावनाओं पर नहीं।” प्रसिद्ध समाजशास्त्री श्यामाचरण दुबे के इस कथन में “इतिहास और साहित्य-इतिहास लेखन का अंतरावलंबन” के इस सत्र की सहमति पाकर यहां इतिहास की दिशा से प्रवेश का प्रयास है।
- अरुंधति राय, गौतम नवलखा, वैरियर एल्विन, श्यामाचरण दुबे, डॉक्टर विनायक सेन इत्यादि के लेखन और कार्यो की इस बहस में लगातार चर्चा हुई, इन लोगों की चर्चा होनी भी चाहिए क्योंकि इन लोगों ने महत्वपूर्ण काम किया है, पर आपका एक बार भी जिक्र तक नहीं हुआ।
- इसी चिंतन को पं. श्यामाचरण दुबे स्पष्ट करते हैं-' सांस्कृतिक चेतना का उदय भविष्य के समाज की उभरती परिकल्पनांए और सांस्कृतिक नीति के पक्ष हमें आश्वस्थ करते हैं कि लोक संस्कृ तियां अस्तित्व के संकट का सामना नहीं कर रही, संभावना यही है कि वे पुष्पित पल्लवित और पुष्ट होंगी ।
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